संसद में बजट सेशन के आखरी सत्र में शनिवार सुबह 11 बजे लोकसभा की शुरुआत राम मंदिर निर्माण के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के साथ हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा- आज का दिन महत्वपूर्ण है। पिछला 5 साल देश के रिफॉर्म, ट्रांसफॉर्म और परफॉर्म का रहा। मैं सदन और सभी सांसदों का धन्यवाद करता हूं।
पीएम ने कहा कि 17वीं लोकसभा में पीढ़ियों का इंतजार खत्म हुआ, इसी सदन ने अनुच्छेद 370 हटाया। दोपहर 2:30 बजे गृह मंत्री अमित शाह 30 मिनट बोले। उन्होंने कहा- 22 जनवरी का दिन 10 सहस्त्र सालों के लिए ऐतिहासिक दिन बनने वाला है। ये सबको समझना चाहिए। जो इतिहास को नहीं पहचानते हैं, वो अपने वजूद को खो देते हैं।
22 जनवरी का दिन 1528 से शुरू हुए संघर्ष और अन्याय के खिलाफ आंदोलन के अंत का दिन है। न्याय की लड़ाई यहां समाप्त हो गई। शाह से पहले AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में अपनी बात रखी। उन्होंने दो बार बाबरी मस्जिद जिंदाबाद के नारे लगाए। शाह की स्पीच शुरू होते ही वो सदन से चले गए।
इससे पहले राज्यसभा में चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने पर चर्चा हुई। इस दौरान चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने कहा कि कांग्रेस नेताओं ने वर्चुअली चौधरी चरण सिंह का अपमान किया, मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूंगा। आपका विरोध, नारेबाजी मैंने अपनी आंखों से देखा है। आपने सदन में जैसा माहौल बनाया, उससे हर किसान को चोट पहुंची।
लोकसभा में राम मंदिर पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के लिए ही बजट सेशन एक दिन बढ़ाया गया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता सत्यपाल सिंह ने चर्चा की शुरुआत की।
राम मंदिर ने देश की भावी पीढ़ियों को देश के मूल्यों पर गर्व करने का मौका दिया। इस विषय पर बोलने में कुछ लोग हिम्मत दिखाते हैं, कुछ मैदान छोड़कर भाग जाते हैं। आज जो व्याख्यान हुए, उसमें संवेदना, सहानुभूति और संकल्प भी है। बुरे दिन कितने भी गए हों, हम भावी पीढ़ी के लिए कुछ ना कुछ करते रहेंगे। सामूहिक संकल्प और शक्ति से उत्तम परिणाम हासिल करते रहेंगे।
चुनाव बहुत दूर नहीं हैं। कुछ लोगों को घबराहट रहती होगी। यह लोकतंत्र का सहज और आवश्यक पहलू है। हम इसे गर्व से स्वीकार करते हैं। हमारे चुनाव ही देश की शान बढ़ाने वाले हैं। लोकतंत्र की परंपरा पूरे विश्व को अचंभित करने वाली रहेगी।
सांसदों से मिले सहयोग, निर्णय कर पाए। कभी कभी हमले भी ऐसे हुए कि भीतर की शक्ति निखर आई। मेरा तो ऐसा ही रहा है चुनौती मिली तो और अच्छे से सामने आए।
लोकतंत्र और भारत की यात्रा अनंत है
विकट काल में हमारा समय गया, क्योंकि डेढ़-दो साल कोविड ने दबाव डाला। इस समय हमने कई साथियों को खो दिया। हो सकता है कि वो हमारे बीच मौजूद रहते। इसका दुख हमें हमेशा रहेगा।
ये अंतिम संत्र और अंतिम घंटा है। लोकतंत्र और भारत की यात्रा अनंत है। ये देश किसी मकसद के लिए है। ये पूरी मानव जाति के लिए है। ऐसे ही अरविंदो, स्वामी विवेकानंद ने भी देखा था। उस विजन में जो सामर्थ्य था वो आज हम आंखों के सामने देख पा रहे हैं।
कोर्ट के चक्कर से बचाने के लिए मध्यस्थता कानून की दिशा में भी सांसदों ने भूमिका अदा की। हमेशा हाशिया पर थे, जिन्हें कोई पूछता नहीं था। सरकार होने का उनको अहसास हुआ है। जब कोविड में मुफ्त इंजेक्शन मिलता था तो उसे भरोसा होता था जान बच गई। सरकार होने का उसे अहसास होता था।
ट्रांसजेंडर अपमानित महसूस करता था, बार-बार ऐसा होता था तो विकृतियों की आशंका बढ़ती थी। इनके प्रति भी संवेदना जताई। 16-17 हजार ट्रांसजेंडर्स को आइडेंटिटी दी, पद्म अवॉर्ड दिया। उन्हें पहचान दी। सरकार से जुड़ी योजनाओं का लाभ उन्हें मिलना शुरू हुआ। दुनिया हमारे निर्णयों की चर्चा करती है। प्रेग्नेंसी के समय 26 वीक की छुट्टी की चर्चा दुनिया के समृद्ध देशों को भी आश्चर्यचकित करते हैं।
कंपनीज एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट, 60 से अधिक गैरजरूरी कानूनों को हमने हटाया है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए इसकी जरूरी थी। कई कानून ऐसे थे कि छोटे-छोटे वजह से लोगों को जेल में डाल दो। कंपनी है और बाथरूम 6 महीने में व्हाइट वाश नहीं कराया तो जेल में डाल दो। ये जो नागरिक पर भरोसा करने का काम था, ये लोकसभा ने किया। जनविश्वास एक्ट 180 से ज्यादा प्रावधान डीक्रिमिनलाइज करने का काम किया।
देश ने जो आर्थिक रीफॉर्म किए हैं, उनमें सभी सांसदों की भूमिका रही। बीते वर्षों में हजारों कम्पलाएंसेस से बेवजह जनता जनार्दन को ऐसी चीजों में उलझाए रखा, उसमें से मुक्ति दिलाने का काम हुआ है। सामान्य व्यक्ति इसके बोझ में दब जाता है। लोगों की जिंदगी में से जितना जल्द सरकार निकल जाए, उतना लोगों का जीवन अच्छा होगा। रोजमर्रा की जिंदगी में हर कदम पर सरकार टांग क्यों अड़ाए। सरकार का प्रभाव उसकी जिंदगी को ही प्रभावित कर दे, ऐसा लोकतंत्र नहीं हो सकता है।
जल-थल-नभ सदियों से इन पर चर्चा चली है। आज समुद्री शक्ति और स्पेस की शक्ति और साइबर की शक्ति। इनका मुकाबला करने की जरूरत उठ खड़ी हुई है। यहां हमें सामर्थ्य पैदा करना है और नकारात्मक शक्तियों का सामाना करना है। स्पेस की दिशा में ऐसा काम हुआ है।
21वीं सदी में हमारी बेसिक नीड्स पूरी तरह बदल रही है, कल तक जिसका मूल्य नहीं था वो आने वाले समय में अमूल्य बन गया है। जैसे डेटा, हमने डेटा प्रोटक्शन बिल लाकर पूरी भावी पीढ़ी को सुरक्षित कर दिया है। वो भविष्य को बनाने के लिए सही इस्तेमाल करेंगे। डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोडक्शन एक्ट बनाया। डाटा का उपयोग कैसे हो, उसकी भी गाइडलाइन उसमें हैं। जिस डेटा को लोग गोल्ड माइन कहते हैं, वो सामर्थ्य भारत को प्राप्त होगा। सिर्फ हमारे रेलवे पैसेंजर्स का डेटा दुनिया के लिए संशोधन का विषय बन सकता है।
5 साल में युवाओं के लिए कानून बने। पेपरलीक जैसी समस्या के लिए कठोर कानून बनाए हैं। युवाओं को व्यवस्था के प्रति गुस्सा था, उसे एड्रेस करने का सभी सांसदों ने महत्वपूर्ण फैसला किया है। ये बात सही है कि कोई भी मानव जाति अनुसंधान के बिना नहीं चल सकती है। मानव जाति का लाखों साल का इतिहास गवाह है कि हर काल में अनुसंधान होते रहे हैं, जीवन का विस्तार होता गया है। सदन ने विधिवत रूप से कानूनी व्यवस्था खड़ी कर अनुसंधान को प्रोत्साहन देने का काम किया। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के परिणाम दूरगामी होंग
आने वाले 25 साल महत्वपूर्ण हैं। राजनीति अपनी जगह है, राजनीतिक लोगों की आशाएं अलग हैं। देश की आकांक्षा, संकल्प बना चुका है। 25 साल वो हैं, जब देश इच्छित परिणाम हासिल करेगा।
1930 में दांडी यात्रा शुरू थी, तब ये घटना छोटी थी। 1947 तक 25 साल के कालखंड ने हर व्यक्ति के दिल में जज्बा पैदा करर दिया था कि मैं आजाद हूंगा। आज देश में वो जज्बा दिख रहा है कि 25 साल में विकसित भारत बनकर दिखाएंगे। हममें से कोई ऐसा नहीं होगा, जिसका सपना यही होगा। कुछ लोगों ने इसे संकल्प बना लिया है, जो नहीं जुड़ पाएंगे और जीवित होंगे, वो इसका फल तो जरूर खाएंगे।
कितने उतार-चढ़ाव से मुस्लिम बहनें इंतजार कर रही थीं तीन तलाक का। इससे मुक्ति और नारी सम्मान का कार्य 17वीं लोकसभा ने किया। सभी सांसदों के विचार कुछ भी रहे हों, लेकिन ये कहेंगे कि न्याय करने के मौके पर हम मौजूद थे। वो बहनें हमें आशीर्वाद दे रही हैं
हम 75 साल तक अंग्रेजों की दंड सहिंता में जी रहे थे। गर्व से कह सकते हैं कि आने वाली पीढ़ियां न्याय संहिता में जिएंगी।
नया सदन भव्य है, उसका प्रारंभ एक ऐसे काम से हुआ है, जो भारत की मूलभूत मान्यताओं को बल देता है। वो नारी शक्ति वंदन अधिनियम है। जब भी इस नए सदन की चर्चा होगी, तो नारी शक्ति अधिनियम का जिक्र होगा ही। सदन की पवित्रता का अहसास तभी शुरू हो गया था।
इस कार्यकाल में बहुत री-फॉर्म हुए, जो गेम चेंजर हैं। 21वीं सदी के भारत की मजबूत नींव उन सारी बातों में नजर आती है। बड़े बदलाव की तरफ बढ़ रहे हैं। सदन ने अपनी हिस्सेदारी जताई। हम कह सकते हैं कि हमारी अनेक पीढ़ियां, जिन बातों का इंतजार करती थीं, ऐसे बहुत से काम इस 17वीं लोकसभा के माध्यम से पूरे हुए।
पीढ़ियों का इंतजार खत्म हुआ। अनेक पीढ़ियों ने एक संविधान का सपना देखा था, हर पल एक दरार दिखती थी, रुकावट चुभती थी। इसी सदन ने 370 हटाकर संविधान के पूर्ण रूप को, पूर्ण प्रकाश के साथ प्रगटीकरण किया। संविधान के 75 वर्ष हुए, जिन महापुरुषों ने संविधान को बनाया, उनकी आत्मा हमें आशीर्वाद देती होगी
इस लोकसभा के पहले सत्र में दोनों सदन ने 30 विधेयक पारित किए, ये रिकॉर्ड है। आजादी के 75 वर्ष पूरा होने का उत्सव पर हमारे सदन ने महत्वपूर्ण काम किए। शायद ही कोई सांसद होगा, जिसने इस मौके को अपने क्षेत्र में लोकोत्सव बना दिया। संविधान लागू होने के 75 वर्ष का भी मौका आया।
पेपरलेस पार्लियामेंट की शुरुआत की। शुरू में कुछ साथियों को दिक्कत हुई, लेकिन अब सब इसी से काम कर रहे हैं। आपकी कुशलता और सासंदों की जागरुकता के चलते 17वीं लोकसभा की प्रोडक्टिविटी 97 फीसदी रही है। ये अपने आप में खुशी की बात है। मुझे भरोसा है कि इस लोकसभा की समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं और ये लक्ष्य रहेगा कि शत प्रतिशत कार्यवाही होगी। आपने रात-रात बैठकर सांसदों के मन की बात सुनी है।
संसद की लाइब्रेरी, जिसे उपयोग करना चाहिए वो कितना कर पाते थे, ये मैं नहीं कर सकता। आपने उसके दरवाजे आम आदमी के लिए खोल दिए। ज्ञान का ये भंडार खोल दिया।
हम संविधान सदन जिसे कहते हैं, पुरानी संसद, जिसमें महापुरुषों की जन्म जयंती पर उनकी प्रतिमा पर जाते थे। वो 10 मिनट का इवेंट होता था। आपने पूरे देश में इन महापुरुषों के लिए निबंध और भाषण का अभियान चलाया। हर राज्य से बेस्ट 2 बच्चे दिल्ली आते थे और महापुरुष की मूर्ति पर प्रोग्राम होता था। ये प्रक्रिया निरंतर चली और लाखों विद्यार्थी संसदीय परंपरा से जुड़े।
ये भी सही है कि इस कालखंड में जी-20 की अध्यक्षता भारत को मिली। बहुत सम्मान मिला। देश के हर राज्य ने अपने तरीके से विश्व के सामने भारत का सामर्थ्य और राज्य की पहचान बखूबी प्रस्तुत की। इसका प्रभाव आज भी विश्व के मन पर है। जी-20 की तरह पी-20 का जो सम्मेलन हुआ। अनेक देशों के स्पीकर आए और आपने मदर ऑफ डेमोक्रेसी भारत की सदियों से चली आ रही वैल्यूज को पेश किया।
मैं सांसदों का भी धन्यवाद करता हूं, उस कालखंड में देश की आवश्यकताओं को देखते हुए सांसद निधि छोड़ने के प्रस्ताव को एक पल गंवाए बिना सभी सांसदों ने माना।
इतना ही नहीं एक देशवासियों को सकारात्मक संदेश देने के लिए अपने आचरण से समाज को एक विश्वास देने के लिए सांसदों ने अपनी सैलरी में 30 फीसदी की कटौती का निर्णय खुद किया। देश को भी विश्वास हुआ कि ये सबसे पहले छोड़ने वाले लोग हैं। हम सांसद मीडिया में कभी ना कभी गाली खाते थे। इतनी सैलरी मिलती है, कैंटीन में इतने कम में खाते हैं। समान रेट होंगे कैंटीन में, इसका किसी सांसद ने विरोध नहीं किया।
5 साल में इस सदी का सबसे बड़ा संकट पूरी मानव जाति ने झेला। कौन बचेगा, कौन बच पाएगा, कोई किसी को बचा सकता है कि नहीं, वो ऐसी अवस्था थी। ऐसे में सदन में आना भी संकट काल था। जो भी व्यवस्थाएं करनी पड़ीं, आपने उसको किया। देश के काम को रुकने नहीं दिया। सदन की गरिमा भी बनी रहे और देश के आवश्यक कामों को जो गति देनी चाहिए, वो गति भी बनी रहे, सदन की भूमिका भी कम ना हो। इसको आपने बड़ी कुशलता के साथ संभाला।
आदरणीय अध्यक्षजी, मैं आपके प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं। पांचों वर्ष कभी-कभी सुमित्राजी मुक्त हास्य करती थीं। आप हर पल आपका चेहरा मुस्कान से भरा रहता है। कुछ भी हो जाए, कभी भी उस मुस्कान में कोई कमी नहीं आई।
आपने संतुलित और निश्चिंत भाव से सदन का नेतृत्व किया। मैं इसके लिए भी आपकी प्रशंसा करता हूं। आक्रोश के पल भी आए, लेकिन आपने पूरे धैर्य के साथ स्थितियों को काबू में रखा। इसके लिए भी मैं आपका आभारी हूं।
ये 5 साल देश में रीफार्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म से जुड़े हैं। ये रेयर होता है। ये अपने आप में 17वीं लोकसभा से आज देश अनुभव कर रहा है। सदन का महत्वपूर्ण रोल रहा है। ये समय है कि मैं सभी माननीय सांसदों का नेता होने के नाते और साथी होने के नाते अभिनंदन करता हूं।
आज का यह दिवस लोकतंत्र की महान परंपरा का महत्वपूर्ण दिवस है। हमने अनेक निर्णय लिए, अनेक चुनौतियों को अपने सामर्थ्य से देश को उचित दिशा देने का प्रयास किया। ये दिवस हम सबकी 5 साल की वैचारिक यात्रा का, राष्ट्र को समर्पित समय का, देश को फिर से एक बार संकल्प को राष्ट्र समर्पित करने का दिवस है।
2024 में मोदीजी के नेतृत्व में सरकार बनेगी। ये शुभ शुरुआत हुई है और हम इसे गंतव्य तक पहुंचाएंगे।
अयोध्या बन रही थी तो ढेरों लोगों ने कहा था कि अयोध्या इंटरनेशनल एयरपोर्ट को श्रीराम नाम दें, मोदीजी ने वाल्मीकि नाम रखा।
मंदिर निर्माताओं ने देश के हर हिस्से को स्थान देने का काम किया। हर प्रदेश और आसपास के देशों से रामकाज के लिए कुछ ना कुछ समर्पित हुआ है। मंदिर सामाजिक एकता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अद्भुत उदाहरण है।
62 की तरह चीन ने फिर मुंह दिखाना शुरू किया, हमने एक इंच जमीन नहीं दी। सर्जिकल स्ट्राइक से घर में घुसकर मारने का साहस भी दिखाया। बच्चे सुसाइड कर रहे थे, तब परीक्षा पर चर्चा कर सुधार की पहल की।
बहुत लंबे समय से ऐसे नेतृत्व की जरूरत थी, 70-70 साल तक ऐसे नेतृत्व में भटकता रहा। जनता ने सर्वगुण संपन्न नेता को चुन इस इंतजार को खत्म किया। राम मंदिर में राम लला की बाल प्रतिमा मनोहरी दृश्य है।
जो गड्ढा ये खोदकर गए थे, उसे भरकर इमारत बनाना, ये राम मंदिर की यात्रा से कम नहीं हैं। जो आर्थिक बदहाली थी,उससे उबारकर 5वें नंबर पर ले गए। नीति बनाने वाला नेता कैसा होता है, उसका उदाहरण है। कोविड आया तो भयभीत नहीं हुए, जानते थे सरकार की मशीनरी कम पड़ेगी, जनता को भी लड़ना होगा। हर मोर्चे पर काम जारी था, गरीब के घर में अनाज पहुंचाया, कोविड मरीजों की सेवा करने वालों का हौसला बढ़ाने का काम जारी रहा। दीया जलाना, थाली बजाना… इस पर हंसने वाले गायब हो गए। मोदीजी के नेतृत्व का दुनिया में डंका बजा।
विरोध करने वालों से निवेदन है, समय को पहचानों और आगे देखकर चलना शुरू करो। इसी में देश का भला है। मोदीजी संन्यासी नहीं है, किसी धर्म के उपदेशक नहीं है, ऐसा अध्यात्मिक चेतना फैलाता है, ऐसी मिसाल शायद ही कहीं हो।
मोदीजी मेरे नेता है, पार्टी के नेता हैं, मेरी पार्टी के प्रमुख नेता है। उन्होंने एक ऐसा नेतृत्व दिया, जिसने नेतृत्व के गुणों का परिचय दिया। अच्छे समय में किस तरह संयम रखना चाहिए, निर्भयता, संवेदनाशीलता, जनता के लिए नेतृत्व कैसा होता है, इसका उदाहरण दिया।
हजारों साल लंबे सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास में जनता के प्रतिनिधि ने अपने यम-नियम, तप और उपासना से भक्ति की तो अकेला उदाहरण मोदीजी हैं। मैं बिड़ला मंदिर में था, जनता की आंखों में आंसू थे, पूरा देश राम मय था।
मोदीजी ने शालीनता के साथ विजय-पराजय के भाव के बगैर जय सियाराम कहा। जब आंदोलन था तब राम की सेना के युद्ध का जयघोष जय श्री राम था, मंदिर पूरा होने पर जयसियाराम हो गया।
भूमि पूजन के वक्त कोई पॉलिटिकल नारा नहीं लगा। हर भाषा में राम भजन ट्वीट कर भक्ति का माहौल बनाया। भक्ति का आंदोलन मीरा ने चलाया, नरसी मेहता, रामानंद, चैतन्य महाप्रभु ने चलाया। समय-समय पर चले इन आंदोलनों ने देश को मजबूत करने का काम किया।
शैय्या पर नहीं सोये, केवल नारियल पानी के साथ उपवास करना, पूरा समय राममय हो जाना, उस वक्त की हर सांस को राम के साथ जोड़कर प्राण प्रतिष्ठा करना। 11 दिन में मां शबरी, गिलहरी, वानर, भालू, जटायु से जुड़े हुए स्थानों पर जाकर श्रद्धापूर्वक प्रणाम करने का काम पीएम ने कहा।
ये मोदीजी के नेतृत्व के बगैर संभव नहीं था। कई लोग बोल रहे थे रक्तपात होगा, दंगे होंगे। जब समय आया मोदी को न्योता मिला भूमिपूजन का। न्यास ने उन्हें मौका दिया तब मोदीजी के आचरण को याद रखना चाहिए। हम सबने आचार्य गोविंद गिरि के वक्तव्य को सुना। मोदीजी ने संतों से पूछा कि यम-नियम क्या होंगे। जो संतों की ओर से बताया गया, उससे भी कठोर 11 दिनों का व्रत रखा।
करोड़ों लोगों ने अपनी श्रद्धा संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीके से अयोध्या पहुंचाई
कोर्ट ने सोचा था कि चुनाव के वक्त फैसला देंगे तो सही नहीं रहेगा। चुनाव के बाद फिर मोदीजी आ गए। फैसला आया और उसके बाद 5 अगस्त 2020 को मोदी जी ने मंदिर की नींव रखी।
करोड़ों लोगों ने अपनी श्रद्धा संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीके से अयोध्या पहुंचाई। आडवाणीजी ने सोमनाथ से अयोध्या यात्रा की, निहंगों की लड़ी हुई लड़ाई थी। मोदीजी ने जन आकांक्षा की पूर्ति करके अध्यात्मिक चेतना का जागरण कर दिया। ये पूरा आंदोलन जब भी दुनिया का इतिहास लिखा जाएगा तो इसे डेमोक्रेटिक वैल्यू के तौर पर लिखा जाएगा।
निर्णय पसंद हो तो स्वीकार कर लेना, पसंद ना आए तो सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाना सही नहीं है। इस फैसले ने भारत के पंथ निरपेक्ष चरित्र को उजागर किया। दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है, जहां बहुमत वाले समाज ने अपनी इतनी लंबी लड़ाई लड़ी।
गुजरात में एक कहावत है-हवन में हड्डी नहीं डालते हैं। जब पूरा देश आनंद में हो तो आप भी इसमें शामिल हो जाइए। इसमें ही भला है। युग परिवर्तन करने के लिए जनता ने मोदीजी को पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनाया, तब से ये लड़ाई शुरू हुई।1990 में जब ये आंदोलन ने गति पकड़ी, उससे पहले ही भाजपा का देश की जनता को वादा था। हमने पालमपुर कार्यकारिणी के अंदर एक प्रस्ताव में कहा था कि राम मंदिर के निर्माण को धर्म के तौर पर नहीं देखना चाहिए। ये देश की आध्यात्मिक पुनर्जागरण का दिन है।
हम जो कहते हैं, वो करते हैं। हम 1986 से कह रहे हैं कि राम मंदिर संवैधानिक तरीके से बनना चाहिए। कुछ लोग कानून की दुहाई देते हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की खंडपीठ से आपा वास्ता रखते हो, संविधान से वास्ता रखते हो? किसी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर मंदिर बनाया होता, तो आप कह सकते थे।
राम मंदिर की लड़ाई दशकों तक चली
राम मंदिर की लड़ाई दशकों तक चली। 1858 से कानूनी लड़ाई चल रही है। 330 साल बाद कानूनी लड़ाई का अंत आया है। आंदोलन से अनभिज्ञ होकर देश के इतिहास को पढ़ ही नहीं सकता है। 1528 से हर पीढ़ी ने आंदोलन को जिया। मोदीजी के वक्त ही यह स्वप्न सिद्ध होना था।
मैं आज 1528 से 22 जनवरी 2024 तक हुई सभी आंदोलन, लड़ाईयों में शामिल लोगों को नमन करना चाहता हूं। वे जहां भी होंगे, वे आनंद की अनुभूति करते होंगे। गिलहरी के समान कई लोगों ने अपना योगदान किया।
कई रामायणों का उल्लेख है। अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, रंगनाथ-रघुनाथ रामायण, अवधी में रामचरित मानस। कई रामायण हैं।
ओवैसी साहब चले गए मुल्ला मसीही ने भी रामायण लिखी है। कई देशों ने रामायण को स्वीकारा है और प्रमुख ग्रंथ के तौर पर स्थापित किया है। नेपाल, इंडोनेशिया, तिब्बत, भूटान में रामायण का अनुवाद हुआ है और उससे प्रेरणा ली जाती है।
हम उन सौभाग्यशाली लोगों में हैं, जो 1528 से राम मंदिर देखना चाहते हैं। करोड़ों लोगों ने आंदोलन किया, शहीद हुए। हम सौभाग्यशाली हैं, हमने मंदिर बनते हुए देखा। देश और रामायण को अलग करके देखा नहीं जा सकता है।
संविधान के पहले पन्ने से लेकर महात्मा गांधी के आदर्श भारत की कल्पना में राम राज्य का नाम दिया गया। राम व्यक्ति नहीं, प्रतीक हैं कि करोड़ों लोगों को आदर्श जीवन कैसे जीना चाहिए। राम का राज्य धर्म-संप्रदाय के लिए नहीं है, ये पूरी दुनिया के देशों के लिए है।
ये करोड़ों भक्तों की आशा, आकांक्षा और सिद्धि का दिन है। समग्र भारत, इस पर पूरा भारत गौर करे। ये समग्र भारत की आध्यात्मिक चेतना के पुनर्जागरण का दिन है। महान भारत की यात्रा की शुरुआत का दिन है। मां भारती को विश्व गुरू की राह पर ले जाने वाला दिन है। देश की कल्पना राम और राम चरित्र के बिना कर ही नहीं सकते। जो इस देश को देखना और जीना चाहते हैं, उनके लिए राम चरित्र जरूरी है। राम जनमानस का प्राण हैं।
शाह बोले- आज मैं देश की आवाज सदन में रखना चाहता हूं
आज मैं मेरे मन की बात और देश की आवाज को सदन के बीच रखना चाहता हूं। ये सालों से कोर्ट के कागजों में दबी हुई थी। नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उसे आवाज भी मिली अभिव्यक्ति भी मिली।
22 जनवरी का दिन 10 सहस्त्र सालों के लिए ऐतिहासिक दिन बनने वाला है। ये सबको समझना चाहिए। जो इतिहास को नहीं पहचानते हैं, वो अपने वजूद को खो देते हैं।
सदन में ओवैसी ने कहा- शिंदे गुट के नेता कह रहे हैं, कि जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई उस वक्त तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव पूजा कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि, उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए। आज मोदी सरकार उन्हीं को भारत रत्न दे रही है। मैं कहना चाहता हूं कि, इंसाफ जिंदा है या जुल्म को बरकरार रखा जा रहा है।
ओवैसी ने कहा- मैं सवाल पूछना चाहता हूं कि क्या भारत सरकार का कोई मजहब है। ये सिर्फ एक धर्म की सरकार है या सभी को साथ लेकर चलने वाली है।
मोदी सरकार मुसलमानों को संदेश दे रही है कि, आप जान बचाना चाहते हो या इंसाफ चाहते हो। मैं कहता हूं कि मैं भीख नहीं मागूंगा। पीएम आज जब जवाब देंगे तो क्या सिर्फ हिंदुत्व से जुड़े लोगों को जवाब देंगे या 140 करोड़ लोगों को जवाब देंगे। अंत में ओवैसी ने लोकसभा के अंदर दो बार बाबरी मस्जिद जिंदाबाद के नारे लगाए।
मोदी सरकार मुसलमानों को संदेश दे रही है कि, आप जान बचाना चाहते हो या इंसाफ चाहते हो। मैं कहता हूं कि मैं भीख नहीं मागूंगा। पीएम आज जब जवाब देंगे तो क्या सिर्फ हिंदुत्व से जुड़े लोगों को जवाब देंगे या 140 करोड़ लोगों को जवाब देंगे।
ओवैसी ने कहा- मैं सवाल पूछना चाहता हूं कि क्या भारत सरकार का कोई मजहब है। ये सिर्फ एक धर्म की सरकार है या सभी को साथ लेकर चलने वाली है।
ओवैसी बोले- इंसाफ जिंदा है या जुल्म को बरकरार रखा जा रहा है
सदन में AIMIM सांसद ओवैसी ने कहा- शिंदे गुट के नेता कह रहे हैं, कि जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई उस वक्त तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव पूजा कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि, उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए। आज मोदी सरकार उन्हीं को भारत रत्न दे रही है। मैं कहना चाहता हूं कि, इंसाफ जिंदा है या जुल्म को बरकरार रखा जा रहा है।
राज्यसभा में कांग्रेस के हंगामे पर जयंत चौधरी बोले- मुझसे कहा गया कि सत्ता पक्ष की ओर जाकर बैठ जाइए। डील और सौदेबाजी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया, जो कि गलत है। भारत रत्न छोटा सम्मान नहीं है। पहले भी तो दिया सकता था, क्यों नहीं दिया गया।
राज्यसभा में जयंत चौधरी ने जैसे ही चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने को लेकर बोलना शुरू किया। I.N.D.I.A के सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाया कि किस नियम के तहत इनको बोलने दिया गया है।
खड़गे ने कहा कि हालांकि हम सैल्यूट करते हैं, जिन्हें भारत रत्न दिया गया है। वहीं, कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि अब अगर जयंत चौधरी एनडीए में जाते हैं, तो उससे तो यही साबित होगा कि भारत रत्न की सौदेबाजी हुई है और उनको अब तो बिल्कुल भी एनडीए का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन जी भारत के रत्न थे, हैं और सदैव रहेंगे। उनका योगदान अभूतपूर्व था, जिसका हर भारतीय सम्मान करता है।’’
कांग्रेस नेता ने कहा कि ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में किसानों को न्याय दिलाया जाना एक मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि किसान न्याय’ के लिए हमारी मांग है कि स्वामीनाथन फ़ॉर्मूले के आधार पर किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी दी जाए। यही पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी और स्वामीनाथन जी को सही मायनों में श्रद्धांजलि होगी।