सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार एक बहुत हि बाद ऐतिहासिक फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया और कहा कि यह सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को छह साल पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिए। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि SBI को राजनीतिक दलों द्वारा भुगतान कराए गए सभी चुनावी बॉन्ड का ब्योरा देना होगा। इस ब्योरे में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बॉन्ड भुनाया गया और इसकी राशि कितनी थी। सभी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग केसामने पेश किया जाना चाहिए। और चुनाव आयोग को SBI से मिली जानकारी को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर देना होगा। चुनाव से ठीक पहले आए इस ऐतिहासिक फैसले को राजनीतिक दल चुनाव में अपने-अपने तरीके से पेश करेंगे।
चुनावी बॉन्ड वो तरीका है जिसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। पहली बार वित्तमंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में इसकी व्यवस्था की थी।
चुनावी बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार एक वचन पत्र जारी किया जाता है जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। योजना भारतीय नागरिकों और घरेलू कंपनियों को इन बॉन्ड के जरिये दान करने की अनुमति देती है जो एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में अपनी पसंद की पार्टी को दे सकते हैं। इन बॉन्ड को राजनीतिक पार्टियों द्वारा 15 दिनों के भीतर भुनाया जा सकता है। बीजेपी चुनावी बॉन्डों से सबसे ज्यादा पैसा लेने वाली दल है।